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गोस्वामी गुरु नाभा दास जी की जय
गोस्वामी श्री गुरु नाभा दास महाराज जी की जीवनी लिखने के लिए गोस्वामी श्री नाभा दास महाशा सेवा समिति पठानकोट पंजाब reg 1418 को इन महान संतो का डॉ राघवा आचार्य महाराज रेवासा धाम सीकर राजस्थान ,आचार्य श्री राजस्थान आचार्य श्री अवदेश आचार्य महाराज गलता धाम राजस्थान, पंडित राजिंदर प्रसाद रामबदराचलम तेलेंगाना ,संत दिकणदास जगनाथ पूरी ओडिशा पुजारी हरिवंस्दास कृषणपिहरिदास मंदिर नगर कुल्लू हिमाचल प्रदेश ,आचार्य राम प्रकाश जोधपुर के आशीर्वाद लेने उपरांत जीवनी लिखने का सोवाज्ञा प्राप्त हुआ !
श्री गुरु नाभा दस 16 वि सदी के महान उचकोटी के संत और ब्रह्म ज्ञानी के साथ साथ धार्मिक ग्रन्थ श्री भक्तमाल के लिखारी वी थे ! इस धार्मिक ग्रन्थ में श्री गुरु नाभा दास् जी ने चार युगो के सभी संतो के जीवन का वर्णन किया है । सबसे पहले संत कबीर श्री गुरु रविदास, श्री गुरु नामदेव, भगत धन्ना , संत सेन महान संतो का जिक्र श्री भक्तमाल ग्रन्थ 1585 में मिला था। इस का वृणन M A पार्ट 1 की किताब SOCIETY AND CULTURE OF INDIAN के पेज 141 में लिखा हुआ है! निरंकारी मिशन की धार्मिक पुस्तक अमरदीप और राधा ज़मी संतो की वाणी में श्री गुरु नाभा दास का नाम आता है । श्री गुरु नाभा दास जी को ऋषि वाल्मीकि महाराज ( श्री रामयण लेखक ) श्री वैद व्यास महाराज (श्रीमद गीता लेखक ) और गोस्वामी तुलसीदस के समांतर नाम माना जाता है !
श्री गुरु नाभा दास जी का जन्म 8 अप्रैल 1537 में माता जानकी देवी और पिता श्री रामदास जाती डोम महाशा गांव रामबदराचलम जिला खमम तेलेंगाना गोदावरी नदी के पास हुआ । इनके माता पिता बांस के टोकरिअा बनाने का काम करते थे और राम मंदिर में पूजा अर्चना करते थे । श्री रामदास् बहुत महान संगीतकार और राग विद्या के विद्वान थे । गाँव के सभी लोक जानकी देवी और राम दास् जी को ताना देते थे की आपके घर औलाद नहीं। इस दुःख से राम मंदिर में भगवान के आगे प्राथना की हमारे घर एक औलाद आप जैसी देना जी । महान तपस्वी संत विद्वान हो जो हमारे आने वाले वंश का मार्गदर्शन करे ।कुछ समय के बाद उनके घर संत रूपी बच्चा पैदा हुआ ।माता पिता ने उनका नाम नारायण दास् रख दिया । वह वी अपने माता पिता जैसे राम भक्त बचपन से ही हो गया था । वे अपने दोस्तों के साथ पवित्र गोदवरी नदी में जाकर खेलता था और रेत के लड़ुऔ को मिठाई बनाकर दोस्तों को खिलाता था । दोस्तों के माता पिता को जब पता चला के नारयण दास् संत रूपी बालक है तो वह उनके माता पिता को बधाई देते है के "आपका बालक आने वाले समय में एक महान उच्च कोटि संत विद्वान बनेगा" । पांच साल की उम्र में ही उनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया था । वह अकेले ही रामबदराचलम की पहाड़ियों और जंगलो में भगवान का सिमरन करता रहता था । उस जंगल के रास्ते से दो संत श्री अग्रदास और कीलदास जी महाराज श्री गलता धाम जयपुर राजस्थान से रामबदराचलम में श्री राम मंदिर ( श्री रामचंदर महाराज जी , माता सीता जी ,छोटे लक्षमण भाई ने इसी धार्मिक स्थल पर वनवास काटा था) और जगनाथ पूरी दर्शन को जा रहे थे । दोनों संतो ने छोटे बालक नारायण दास को देख कर हैरान हो गए और पूछने लगे " हे बालक ! आप कौन हो ? आपको इस जंगल में डर नहीं लगता ? आपका रक्षक कौन हे ? "। बालक नारायण दास् ने उत्तर दिया ! "मैं पांच तत्व का पुतला हूँ ! और मेरा वही रक्षक है जो इस संसार का है !" वालक का धार्मिक उत्तर सुनकर दोनों संत खुश हो गऍ और संत श्री कीलदास अपने करमंडल में से जल लेकर आंखों में सिडकाव किया और अपना शिष्य बनाकर जनक नाथ पूरी की यात्रा के लिए रवाना होगये । फिर वहां से वापिस श्री गलता धाम जयपुर आ गए ।
दोनों संतो ने अपने गुरु संत श्री कृष्ण प्योरी महाराज जी को बालक नारायण दास के बारे में बताया और बालक नारायण दास को वैष्णव परम्परा का राम मंतर तुलसी माला पहनाकर संत रूपी बना दिया और आज्ञा दी इस धाम की पाठशाला में शास्त्री , आचार्य गोस्वामी विद्या प्राप्त करे और जब हम संत को प्रवचन करे तो आप पंखे की सेवा करे । एक दिन संत श्री अगर दास जी संतो को प्रवचन कर रहे थे तो नारायण दास पंखे की सेवा कर रहे थे । गुरु अग्रदास जी का एक शिष्य हरिदास जगनाथ पूरी ओडिशा में रेवासा मठ में शिष्य बना था वे समुंद्री जहाजों में व्यापर करने का काम करता था । एक दिन उसका जहाज पानी में डूबने लगा तो उन्होंने अपने गुरु श्री अग्रदास जी को याद कर कहा के मेरे डूबता जहाज का रक्षण करो । इसलिए गुरु अगर देव जी का ध्यान भक्ति से हटने लग गया । बालक नारायण दास जी ने अपने गुरु की ओर देखा मेरे गुरुजी प्रवचनों को छोड़कर डूबते जहाज को किनारे लगाने की कोशिश कर रहे हैं। तो हम भी पंखे की हवा से कोशिश करते हैं कि डूबता जहाज को किनारे लगा दिया जाए।
तब नारायण दास जी ने गुरु जी के आशीर्वाद से पंखे को इतनी तेज घुमाया की पंखे की हवा ने समुद्र में डूबते जहाज को किनारे लगा दिया। फिर भी गुरुजी का ध्यान उधर ही था कि कैसे डूबते जहाज को किनारे लगाऊं तो उसी समय बालक नारायण दास जी ने कहा "गुरु जी जहाज तो किनारे लग गया अब आप संतो को प्रवचन कीजिए" यह बात सुनकर गुरु जी ने आंखें खोल कर नारायण दास जी की और देखा ओर कहा "यह हमारा शिष्य इतना महान संत हो गया कि हमारे नाभी की बात भी जान लेता है " और खुशी से कहा " हे! नारायण दास आज से आपका नाम नाभादास होगा और आज से पंखे की सेवा छोड़कर चार युगों के संतों का जीवन लिखकर उनका नाम अमर करें। श्री गुरु नाभा दास जी ने आज्ञा लेकर 4 युगो के भक्तों का जीवन एक धार्मिक श्री भक्तमाल ग्रंथ में लिख दिया। जब श्री गुरु नाभा दास महाराज जी ने ग्रथं लिख दीया तो बाबा गुरु कृष्ण प्होरी दास जी और संत कीलदास जी ने श्री नाभा जी को कहा कि आप अपने गुरु श्री अगृदास जी को साथ लेकर काशी गंगा में रहते सभी संतो को निमंत्रण पत्र देकर आओ कि हमने चार युगो के संतो के जीवन पर धार्मिक श्री भक्तमाल ग्रंथ लिखा है उसको प्रमाणित करने के लिए हम भंडारा करने वाले हैं उस भंडारे में आप सभी संत आकर मुझे आशीर्वाद देना। यह आज्ञा लेकर श्री गुरु नाभा दास जी और संत श्री अग्रदास जी काशी की ओर चल पड़े । रास्ते में जितने भी संत मिलते उनको विनम्रता से निमंत्रण पत्र भी देते थे। इसी रास्ते में श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में गुरु चेला रुक पड़े और सुबह शाम को कणक भवन (श्री राम भगवान मंदिर) में पूजा आरती करने जाते थे। एक दिन मंदिर के पुजारी ने श्री नाभादास के बारे में पूछा "आप बहुत श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हो आज आप भी यहां पर कुछ प्रवचन करें " तब कुछ मंदिर के संतो ने श्री नाभा दास की जाति पर कटाक्ष किया था तो नाभा दास जी ने प्रवचनों में कहा "जाती ना पूछे साधु की पूछ लीजिए ज्ञान मूल करो कृपाण का पड़े रहने दो म्यान " । भगवान के घर में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए " वक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बापू एक इनके पदबंधन किए नासित बिघन अनेक " । यह प्रवचन सुनकर कणक भवन के मंदिर के सभी संतो ने श्री गुरु नाभा दास जी की प्रशंसा की और कहा आप इतने महान संतों की चार युगों के भक्तों का धार्मिक ग्रंथ श्री भक्तमाल की महिमा आगे से सुबह शाम होगी जब आपका यह ग्रंथ प्रमाणित हो जाए तो हमें भी धार्मिक भक्तमाल ग्रंथ भेजने की कृपा करें । इससे मंदिर में आज भी सुबह और शाम को ठाकुर जी को भक्तमाल ग्रंथ का पाठ सुनाया जाता है। इस अयोध्या में यहां पर श्री गुरु नाभा दास और श्री गुरु अग्रदास ठहरे थे वहां पर आज बड़ा भक्तमाल मंदिर है। इसके उपरांत गुरु चेला काशी में गंगा मैया में स्नान करने के बाद सभी मंदिरों के दर्शन किए और सभी संतो को श्री गलता धाम जयपुर राजस्थान में भंडारे में पहुंचने का निमंत्रण पत्र दिया ।इसके बाद वह मथुरा वृंदावन में भी सभी संतो को और गोस्वामी तुलसीदास जी को भी मिले और निमंत्रण पत्र दिया । फिर वह वापस गलता धाम में पहुंचकर भंडारे की तैयारी करने लगे। गोस्वामी तुलसीदास और सभी संत यह सोचने लगे कि श्री नाभा दास ऐसे महान संत कैसे बन गए ।तो उनहोने गरीब डोम जाति के नाभा जी को महान कार्य करने के लिए रोकने की साजिश रची और संदेश भेज दिया कि हम आप के भंडारे में तब आएंगे जब आप चंदन की लकड़ी से भोजन तैयार करवा दोगे। वह जानते थे कि राजस्थान में चंदन की लकड़ी तो मिलेगी नहीं अगर मिल भी गई उसमें सांप होते हैं। जब श्री नाभादास लकड़ी काटे तो सांप उसको काट देंगे । तो उसकी कहानी खत्म हो जाएगी। परंतु श्री नाभा दास जी ने उन संतों का संदेश स्वीकार किया और धाम से बैलगाड़ी लेकर जंगल में चले गए और जंगल से प्रार्थना कि हमने संतो के लिए चंदन की लकड़ी से भोजन तैयार करवाना है इसलिए मुझे चंदन की लकड़ी चाहिए जंगल से आवाज आई कि "हे! नाभादास आप तो महान संत ब्रह्म ज्ञानी हो जिस भी वृक्ष को हाथ लगाएंगे वह चंदन का हो जाएगा "। तो श्री नाभादास जी ने एक वृक्ष को हाथ लगाया तो वह चंदन का हो गया और नाग देवता भी हाजिर हो गए। श्री गुरु नाभा दास जी ने नाग देवता को प्रार्थना की और वह वहां से चले गए। श्री गुरु नाभा दास जी ने चंदन की लकड़ी काटकर बैलगाड़ी के पास आ गए। तभी उन्होंने देखा कि एक शेर जोकि संत तारा नाथ जी थे उन्होंने बैल को मार दिया श्री गुरु नाभा जी ने अपनी शक्ति से शेर को कान से पकड़कर बैल का काम लेते हुए गलता दाम में लकड़ी लेकर आ गए और भंडारे की तैयारी होने लगी। ईर्ष्या करने वाले संत और गोस्वामी तुलसीदास भी उस भंडारे में पहुंचने के लिए मजबूर हो गए।तब संत सम्मेलन शुरू हुआ सभी संतो ने गुरु नाभा दास जी को गोस्वामी की उपाधि पाने की बधाई देने लगे तथा पुष्प वर्षा से उनका स्वागत भी किया।यह सब देखकर गोस्वामी तुलसीदास जी सबसे पीछे बैठ गए।तब श्री गुरु नाभा दास जी ने देखा तो दौड़ते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी के पास गए और कहां "आप जी तो महान संत धार्मिक लेखक हो"। "जो मैंने धार्मिक श्री भक्तमाल ग्रंथ लिखा है उसमें एक महान संत की जरूरत थी जो आप इस वक्त माल में समेरू रूप में होंगे"। यह सुनकर तुलसीदास जी ने कहा कि "श्री नाभादास आप बहुत महान संत और विद्वान हो। हम आपके साथ ज्ञान गोष्टी यहां गलता धाम में करेंगे और हमारे द्वारा लिखा धार्मिक ग्रंथ श्री राम चरित्र मानस भी प्रमाणित करेंगे"। इसके बाद श्री गुरु नाभा दास धार्मिक यात्रा के पहले अपने माता-पिता के गांव राम भद्राचलम गोदावरी नदी के पास तेलंगाना,श्री राम मंदिर में दर्शन किए उसके उपरांत जगन्नाथ पुरी रेवासा मठ यहां पर हरिदास सेठ जी ने अपने श्री गुरु अग्रदास जी को समुद्र में डूबते जहाज को पार लगाने की अरदास की थी, प्रयागराज इलाहाबाद संगम त्रिकूट यहां पर वैष्णव संप्रदाय के श्री रामानंदाचार्य जी,श्री अनंतानंद नरहरि दास और तुलसीदास जी ने भगवान श्री रामचंद्र जी के दर्शन किए इसके बाद काशी बनारस से अयोध्या से होकर राम जन्मभूमि पंजाब से होते हुए नगर कुल्लू हिमाचल प्रदेश में यहां पर इनके बाबा गुरु कृष्ण प्होरी दास मंदिर यहां पर श्री गुरु नानक देव जी और कृष्ण प्योहरी दास जी ने ज्ञान गोष्टी करने के उपरांत श्री गुरु ना नानक देव जी ने कृष्ण प्योहरी दास महाराज जी के वैष्णव संप्रदाय के संतों को कहा " हम अपने श्री गुरु आदि ग्रंथ में उनकी बानी लिखेंगे तो कृष्ण प्योहरी दास जी बोले थे कि हमारे पोत्र चेला श्री गोस्वामी नाभादास धार्मिक ग्रंथ श्री भक्तमाल लिख रहे हैं उसमें से आप बाणी प्राप्त कर लेना। आज जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भक्तों संतों की वाणी है उसमें से श्री भक्तमाल ग्रंथ से लिए हुए है। यह प्रमाण आज गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी की m.a. पार्ट वन पन्ना नंबर 141 सोसायटी कल्चर ऑफ इंडिया में दर्ज है राधास्वामी व्यास की संतों की वाणी धार्मिक ग्रंथ पुस्तक में नंबर 281 में दर्ज है कि श्री गुरु कबीरदास जी, श्री गुरु रविदास, श्री नामदेव भक्त की वाणी श्री गुरु नाभा दास की धार्मिक ग्रंथ श्री भक्तमाल से सबसे पहले 1585 ईस्वी में प्राप्त प्राप्त हुई थी और हमारा पुत्र शिष्य यहां पर दर्शन करने के लिए आने वाले हैं ।"यह सब वार्तालाप गुरु नानक देव जी और कृष्ण प्योहरी महाराज जी के बीच में हुआ था। गुरु नाभा दास जहां के दर्शन करने के लिए पहुंचे उस समय नगर कुल्लू के राजा श्री जगत सिंह अपनी धर्मपत्नी को लेकर पहुंचे थे राजा ने अपनी धर्म पत्नी के शरीर में चमड़ी के रोग के बारे में बाबा कृष्ण प्योहरी को इलाज के लिए निवेदन किया। तो बाबा कृष्ण प्हौरी जी ने श्री गुरु नाभा दास जी को कहा "है !शिष्य राजा की धर्मपत्नी जी को वौली में ले जाकर 3 वार राम राम कहकर डुबकी लगवा दो और एक महीना हर रोज इस में आकर रानी स्नान करें तो इसका चमड़ी का रोग दूर हो जाएगा। रानी ने वैसा ही किया और 1 महीने के बाद चमड़ी का रोग दूर हो गया। यह देखकर राजा खुश हुआ और उसने कृष्ण प्होरी महाराज जी से कहा कि हम आप को दान देना चाहते हैं। तो बाबा जी और गुरु नाभा दास जी ने कहा कि हम श्री राम भगवान के पुजारी हैं राम राम का नाम जपते हैं और अगर आपको कुछ दान देना है तो राजा जी आप अयोध्या से भगवान श्री रघुनाथ जी की मूर्ति लेकर दशहरा के दिन से 10 दिन मेला लगाएं यही हमारी इच्छा है । तबसे राजा श्री जगत सिंह जी और आगे उनके वंश ने 1600 ईस्वी से यह परंपरा चलाएं रखी है। इसके बाद श्री गुरु नाभा दास अपने बाबा गुरु कृष्ण प्योहरी दास के साथ जम्मू कश्मीर ,डमटाल धाम, पंजाब, गुरदासपुर भाईया, पठानकोट, श्री ध्यानपुर धाम ,श्री पनडोरी धाम यह दोनों धार्मिक संतों के सभी धाम की यात्रा की।यह सारे धाम श्री गलता धाम के शाखाएं हैं। श्री गलता धाम के प्रमुख संत बाबा कृष्णा प्योहरी दास के चेले श्री अग्रदास जी श्री श्री कन्नड़ दास की तरह बाबा श्री लाल दयाल जी श्री ध्यानपुर धाम और संत श्री भगवानदास जी पनडोरी धाम दर्शन करने के लिए पहुंचे। कुछ समय यहां गुजारने के बाद श्री गुरु नाभा दास और बाबा कृष्ण प्योहरी दास वापिस श्री गलता धाम जयपुर राजस्थान पहुंच गए। कुछ समय बाद श्री गुरु नाभा दास और उनके गुरु श्री अग्रदास के साथ दक्षिण भारत की धार्मिक यात्रा करने के लिए पुष्कर यहां पर भगवान ब्रह्मा जी ने यज्ञ करवाया था इसके दर्शन करने के उपरांत विष्णु भगवान के तपोभूमि त्रिवेंद्रम मंदिर केरला में दर्शन करने के लिए पहुंच गए। वहां के राजा श्री धर्मपुरम सिंह जी ने श्री अग्रदास और श्री नाभाजी से प्रार्थना की कि हमारे 14 पीढ़ी पीछे के वंश के राजा विष्णु भगवान के दर्शन करने के लिए जो यहां संत आते हैं उनसे सत्संग विष्णु भगवान जी का करवाते हैं ताकि हमें विष्णु भगवान के दर्शन हो। परंतु आज तक हमें दर्शन नहीं हुए हमें राजस्थान के राजा श्री मान सिंह जी द्वारा पता चला है कि आप दोनों संत बहुत महान हो और आपसे प्रार्थना है कि आप यहां पर 1 सप्ताह विष्णु भगवान जी के नाम का भजन करें कि आप दोनों संतों की कृपा से विष्णु भगवान के दर्शन हो सकते हैं। ऐसा ही श्री गुरु नाभा दास और श्री गुरु अग्रदास संत मंडली ने 1 सप्ताह तक विष्णु भगवान की महिमा सत्संग किया। तो राजा श्री धर्मपुरम सिंह और सभी सत्संग में बैठे संतो को विष्णु भगवान जी के दर्शन हुए। राजा ने इस खुशी से अपने महलों में भोजन करवाने के लिए बुलाया और सोने की थाली में भोजन करवाने लगे। तो श्री गुरु नाभा दास जी ने सोने की पत्तल में भोजन खाने से मना किया। " हम भगवान के पुजारी हैं हमें भगवान का सिमरन करने वाले को सोना नहीं चाहिए भगवान का आशीर्वाद चाहिए"। वहां के राजा श्री धर्म सिंह की परंपरा थी कि अपने महलों में जिन संतों और ब्रह्मा को भोजन करवाते थे उनको सोने की पतल में भोजन करवाकर दान के रुप में सोने की पत्तल दे देते थे। राजा जी बहुत खुश हुए कि वह संतों ने हमें श्री विष्णु भगवान जी के दर्शन करवाएं और लालच भी नहीं है ।इस खुशी से उसने विष्णु भगवान के मंदिर का नाम पदमनाभास्वामी मंदिर कर दिया। तथा कहा कि आज से इस मंदिर को पदम नाभा स्वामी नाम से ही पुकारा जाएगा। आज भी इस मंदिर के गेट के पास जहां पर श्री गुरु नाभा दास जी ने अपने संत मंडली के साथ विष्णु भगवान जी के नाम का सत्संग किया था और विष्णु भगवान जी के दर्शन किए थे उस स्थान पर श्री गुरु नाभा दास जी के भजन मंडली के संतों के चित्र और मंदिर हैं ।सभी श्रद्धालु मुख्य गेट से श्री गुरु नाभा दास के मंदिर में माथा टेककर विष्णु भगवान के मंदिर में माथा टेकने जाते हैं और सभी श्रद्धालु भजन करते हैं कि नाभा स्वामी जी हमें भी विष्णु भगवान जी के दर्शन करवाएं जैसे आप जी ने राजा धर्म पूर्ण सिंह को सत्संग के समय करवाए थे। इसके बाद श्री गुरु नाभा दास जी और श्री अग्रदास जी कन्याकुमारी यहां पर तीन समुद्रों का संगम है। इस धरती में भारत की धार्मिक संस्कृति के अनुसार जैसे संत महापुरुष प्रयागराज इलाहाबाद यहां पर तीन नदियों का संगम होता है अपने शरीर को पवित्र और पापों की मुक्ति पाने के लिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं हैं वैसे ही और राजा इंदर देव जी को जब ऋषि गौतम जी ने शराढ दिया था तब कन्याकुमारी संगम समुद्रों में स्नान कर कर अपने पापों की मुक्ति पाई थी। इसके दर्शन करने के लिए वहां पहुंचे तथा स्नान व पूजा करने के बाद रामेश्वरम धाम तमिलनाडु और हरिद्वार से वापस श्री गलता दाम जयपुर राजस्थान से रेवासा जंगल पहाड़ी में अपने गुरु अग्रदास जी के साथ धूना लगा लिया और भगवान का स्मरण करने लगे। 1570 मुगल राजा अकबर जी और अपने सेनापति राजा मानसिंह के साथ 10000 सैनिक लेकर अजमेर शरीफ की यात्रा की और रास्ते में रेवासा जंगलों में संतों का धूना देखकर विश्राम करने की इच्छा प्रकट की । तो राजा मान सिंह जी ने संतों के धूने में जाकर संत श्री अग्रदास जी को प्रणाम किया। जबकि वहां पर संत गुरु नाभा दास अपनी गुरुजी के पास बैठे थे उनको राजा मानसिंह ने माथा नहीं टेका। यह छोटा संत बालक है जब अग्रदास जी ने राजा मानसिंह को प्रसाद देने के लिए श्री नाभादास को कहा तो नाभा दास जी ने केलों का प्रसाद देने लगे तो राजा मान सिंह जी ने कहा की टोकरी में केवल 10 केले हैं , मेरे साथ 10000 सैनिक हैं। अगर मैंने प्रसाद ले लिया तो तो सैनिक रह जाएंगे। तब राजा ने कहा कि संत जी यह केलों का प्रसाद आप हमारे सैनिकों को बांट दो। तो श्री गुरु नाभा दास जी ने राजा को कहा कि अपने सैनिकों को भेज दो हम उनको प्रसाद बांट देंगे। उस समय राजा हंस पड़ा कि यह संत को मालूम नहीं है कि हमारे साथ 10000 सैनिक है और केले तो केवल 10 हैं। कैसे बटेगा उसी समय श्री गुरु नाभा दास जी ने राजा के मन की बात जान ली तथा सभी सैनिकों को 10, 10 केलों का प्रसाद बांट दिया। तब भी टोकरी में 10 केले रहे इस चमत्कार को देखकर राजा मानसिंह ने श्री गुरु नाभा दास जी के चरण पकड़ लिए और कहा कि आप के स्थल को सोलह सौ बीघे जमीन दान के रूप में देते हैं। यहां पर जितने भी संत आए सभी को अच्छी सुविधा प्राप्त हो और आज भी इस धार्मिक स्थल में रेवासा धाम से जाना जाता है धार्मिक स्थल के बाहर बहुत बड़ा गेट है। जो राजा मानसिंह गुरु अग्रदास जी और श्री गुरु नाभा दास जी के चित्र से बनवाया गया है। इस धार्मिक स्थल को भारत के उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत ने उद्घाटन किया था। अतः मैं श्री गुरु नाभा दास महाराज सुन 1643 ईस्वी में धार्मिक स्थल से ज्योति जो समा गए उनकी समाधि आज भी अपने गुरु अग्रदास के साथ बनी हुई है।इन समाधि पर हर साल दिसंबर महीने में गो स्वामी श्री गुरु नाभा दास महाशा सेवा समिति रजिस्टर्ड 1418 पठानकोट पंजाब गुरु सेवकों को धार्मिक जथा लेकर फूलमाला चढ़ाकर श्रद्धांजलि भेंट करते हैं और यहां पर श्री गुरु नाभा दास का धूना तथा उस पर हवन यज्ञ सत्संग और भंडारा करते हैं। इसके उपरांत धार्मिक स्थान श्री गलता धाम जहां पर बैठकर गुरु नाभा दास जी ने भक्तमाल की रचना की थी वहां जाकर गुरु सेवक झंडा पूजन करते हैं हवन यज्ञ सत्संग भंडारा भी करते हैं और रात को इस धार्मिक स्थल पर दीपमाला की जाती है। और गुरु नाभा दास जी को याद किया जाता है और कहा जाता है कि आप हमारे गरीब महाशा समाज का नाम धार्मिक सामाजिक पधर पर ऊपर उठा उठाया है । नहीं तो आपके बिना हमारा समाज के लोगों को बिना गुरु के कहा जाता था। जो हमारे बुजुर्ग की अंतरात्मा कहती थी कि गुरु नाभा दास दिल टूटेया दी आज तेनु वास्ता कोय दे प्यार दा, कोमदा नसीब तेनु वाजा मारदा, दुनिया दे विच रव से आंदा बन के संत फकीर बदल देता है मिनटों में तकदीर । कॉम का बाली गुरु नाभा दास।
निवेदक गोस्वामी गुरु नाभा दास महाराज की जीवन सार लिखने के लिए उपरोक्त दिए गए सभी धार्मिक स्थलों के दर्शन करने और उन धामों के संतों के साथ ज्ञान गोष्टी करने के बाद यह लिखने का उपराला किया है अगर आप जी के पास इसके अलावा कोई और जानकारी हो तो हमें कृपया भेजें हम जितना भी हो सके इसके बारे में लिखेंगे और श्री गुरु नाभा दास जी की इतनी महान कुर्बानी केवल महाशा समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए है जैसे संत ना होते जगत में जल मरता संसार नाभादास ना होते जगत में कौन लिखता भक्तों के साथ जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान मोड़ करो कृपाण का पड़ी रहने दो म्यान लेखक स्वामी बियर पोगल गुरु सेवक परसोत्तम पुर जुगरा श्री सुरजीत कुंडा और समूह मेंबर
very nice in m very happy to read this educational history...jai ho Sawami Nabha Das Ji
ReplyDeleteधन्यवाद
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